________________ धम्मि- तं विप्रतार्य नर्तुः / कोकासागमनं जगौ // 10 // अदीघरघराधीश-स्तं निजैः सुनटवजैः / / नृ. M णां पुण्यदये ख्याति–रेव बंधनिबंधनं // 11 // नापयित्वा तमप्रादीत् / सकोप श्व कोःपतिः // | अरे वद वद कास्ति / स शत्रुदमनो नृपः // 15 // यत्र त्वं ननु तत्रैव / स शत्रुदमनो नवेत् // ६४ए विरहो युवयोर्वायु-वह्नयोखि न संचवी // 13 // कांदिशीकतया तेन / स्वामिस्थानं न्यवेद्यत // | नयामितापिते चित्ते / न तिष्टेजुह्यपारदः // 14 // सप्रियः स नृपोऽनेनो-दग्रसेनेन जनसे // तेणे राजाने कोकासर्नु अागमन सूचव्यु. // 10 // त्यारे राजाए पोताना सुगटना समुहथी तेने पकमी मगाव्यो, केमके पुण्योनो दय थवाथी माणसोनी प्रशंसाज बंधना कारणरूप थपडे ने. // 11 // पनी राजाए गुस्से थयेलानीपेठे तेने डरावीने पूज्यु के, अरे! तुं बोल बोल के ते अरिदमन राजा क्या ? // 12 // ज्यां तुं त्यांज खरेखर ते अरिदमन होवो जोश्ये, केमके वायु घने अग्मिनीपेठे तमारा बन्नेनो विरह संभवी शकतो नथी. // 13 // त्यारे ते कोकासे पण न यथी गजराश्ने राजानुं ठेकाकही दीधुं, केमके नयरूपी अमिथी तपेलां मनमां गुप्तवातरूपी | पारो तेरी शकतो नथी. // 14 // पनी चैतन्यवाला प्राणीने जेम मोहनीय कर्म, तेम वळवान सै. PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust