________________ 61 धम्मिः // 6 // तत्परीदितुमन्येाः / कुमारः सुहृदो जगौ // वयस्याः प्रातरायात / वनं सर्वे सवलनाः॥। // 6 // // मदर्थमयमारंनो / नूनमेवं व्यचिंतयन् // श्रागत्य धम्मिलो धाम / जीर्ण मंचकमाश्रयत् // 70 // हिमदग्धांबुजबाय-मुखं निःश्वासवर्षिणं // हिता तं हेतुमप्रादीद्-दुःखस्य विमला बलात् // 71 // स जगौ दैवदोषेण / दुःखं तदुपढौकते // मातर्न माति यत्पाथः-पतिप्रतिमया हृदि // 7 // केनापि झापितो गेह-वृत्तं मम नृपांगनः // तेनाह्वयति स प्रात-तिर्मी सप्रियं वने मके ज्ञानीनीपेठे मित्रोथी कई अजाण्युं रहेतुं नथी. // 17 // पड़ी तेनी परीदा करवामाटे एक दिवसे ते राजकुमारे पोताना मित्रोने कह्यु के, हे मित्रो! प्रजाते तमो सघळानए पोतपो. तानी स्त्री सहित बगीचामां यावq. // 6 // खरेखर या प्रयास मारेमाटेज कर्यो , एम वि. चारीने धम्मिल घेर थावीने एक जीर्ण मांचापर पड्यो. // 70 // हिमथी बळेलां कमलसरखा मु. खवाळा अने निसासा नाखता एवा ते धम्मिलने ते हितेच्नु विमलाए हठ लेश्ने तेना दुःखनुं कारण पूज्युं. // 11 // त्यारे ते बोल्यो के हे माताजी! कर्मयोगे मारापर ते दुःख थावी पडयं ने के जे समुज्जेवहुं थश्ने मारा हृदयमां पण मातुं नथी. // 32 // कोइए पण मारा घरनुं वृ Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.