________________ एए धम्मि- महौषध्येव सर्वत्र / वध्वा दृष्टप्रजावया // समं समुद्रदत्तोऽपि / ययौ गुरुपदांतिकं // 20 // नवा निषले क्रमतो / नृपे लोके च निर्ममे / / अपेयीकृतपीयूष-सारिणी देशनां मुनिः / / 51 // दे. हिनेह नवारामे / विरामब्रमकारिणा // दुःप्रापोऽनल्पसंकल्प-कल्पफुर्मानवो नवः // 5 // तं प्राप्यापि प्रमादेन / विचारजडबुध्यः // एरंममिव मन्वानाः / केऽपि स्युर्दुःखनाजनं // ५३॥ने दाः पंच प्रमादस्य / मदनस्येव सायकाः // व्यामोह्य सर्व कुर्वति / ही जनं नरकाध्वगं // 24 // नेदस्तत्रादिमोऽवादि / सुराव्यर्च्यपदैः सुरा // चेतना मृतकस्येव / यया मूढस्य नश्यति // 25 // ना चरणोपासे श्राव्यो. // 50 // पनी अनुक्रमे राजा बने लोकोना बेगवाद ते मनिराज का मृतनी नहेरने पण जीतनारी धर्मदेशना देवा लाग्या के, // 51 // या संसाररूपी बगीचामां बेसता अने फरता प्राणीने अनेक संकल्पोमाटे कल्पवृक्षसरखो मनुष्यनव र्खन . // 12 // व. ही ते मख्या छतां पण अविचारी अने जड बुध्विाळा केटलाक प्राणीन तेने एरंमसमान जाणीने दुःखोना नाजनरूप थाय . // 53 // कामदेवना बाणसरखा ते प्रमादना पांच नेदो ने के | जेन सर्व लोकोने मोहमां नाखीने नरकगामी बनावे . // 24 // देवोनी श्रेणिथी पूजनीय च P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust