________________ धम्मि- दैतियीकस्तु विषया-स्तत्वालोकस्य दस्यवः // ददतेऽसाध्यमांध्यं ये / काचबिंदुवदंगिनां // 16 // कषायास्तु तृतीयः स्या-द्देदो यैराकुलीकृतं // मध्यस्था मन्वते जात–सन्निपातमिवांगिनं // 5 // तुर्यो नेदस्तु निडा स्या-द्यानिलिंगुसहोदरी // निरुणहि दृशावेव / नृणां गयानिषेदुषां // // 27 // चतस्रो विकथानेदाः / प्रमादः पंचमः स्मृतः॥ वातूल व तूलस्य / यः स्थैर्य हंति चे. | तसः // एए // मोहपंचाननस्यामी / नेदाः पंचाननोपमाः // ग्रसंते नांगिनस्कांस्का-नत्राणान | रणोवाळा जिनेश्वरोए तेननो मदिरा नामे पहेलो भेद कह्यो बे, के जेथी शबनी पेठे मूढ माण सर्नु चैतन्य नाश पामे . // 55 // तेजनो बीजो नेद तत्वज्ञानने बुटनारा विषयो ने, के जेन पडळनीपेठे प्राणीनने असाध्य अंधापो आपे . // 56 // बीजो भेद कषायो ने, के जेथी व्या. कुल थयेला प्राणीने विहानो सन्निपातवाळा पाणीसरखो माने . // 27 // तेजनो चोथो नेद निडाने, के जे भिलामासरखी ने, अने तेनी गयामां बेठेला प्राणीननी ते दृष्टिनेज रोकी रा. खे // 7 // विकथाना चार नेदो , धने पांचमो प्रमाद बे, के जे पवन जेम रुना पुममां| नी स्थिरताने तेम चित्तनी स्थिरतानो नाश करे . // 27 // मोहरूपी सिंहना पांच मुखोसर P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust