________________ धम्मिः। हरिणानिव // 60 // शांतमोहाश्चतुर्झनाः / श्रुतकेवलिनोऽपि हि // प्रमादपावश्येन / ब्राम्यति सार्थ नवकोटिषु // 61 // श्रेयःफले यतध्वं त–दप्रमादधनार्जनाः // न वस्तु दुर्लभं प्राप्य / प्रमाद्यति सचेतसः // 6 // ततः प्रमुदिताः पौरा / गुरोरत्नखनेखि // संगृह्णति स्म नियम-रत्नानि स्वखशएए क्तितः // 63 // अथ शीलवती नत्वा / गुरुराजं व्यजिज्ञपत् / श्रमी राजादयो जाताः / प्रजो कि मयि कामुकाः // 64 // नऊगार गुरुर्धन्ये / कमैव बलवत्खलु // अमी हि प्राग्नवान्यासा-द्धखा था पांच नेदो डे, के जेन शरणविनाना हरिणोनीपेठे कया कया प्राणीनने ग्रसी जता न. थी? // 60 // शांतमोहवाळा चतुर्सानी श्रुतकेवलीन पण प्रमादने वश थवाथी कोडोगमे नवो. मां नमे . // 61 / / माटे अप्रमादरूपी धन मेलवीने तमो कल्याणकारी फलमाटे प्रयत्न करो? केमके बुध्विान माणसो दुर्खन वस्तु पामीने प्रमाद करता नथी. // 6 // पनी खुशी थयेला नगरना ते लोकोए रत्नोनी खाणमांथी जेम तेम गुरुपासेथी पोतपोतानी शक्तिमुजब नियमरूपी ग्लो ग्रहण कर्या. // 63 // हवे शीलवतीए गुरुमहाराजने नमीने विनंति करी के हे प्रनो! या राजायादिक मारापते केम रागी थया? // 64 // त्यारे गुरु बोल्या के हे धन्ये! कर्मज खरेखा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust