________________ धाम्म। // रात्रिः श्वेता च कृष्णा च / दिवसस्त्वेकरूपञ्चाक् / / 10 / / प्राग्वनव नृषु द्वेषः / प्रिये कोपनता मा ततः // ततो भर्तृवियोगश्च / धिग्मां दुःखमयीं सदा // 17 // यदा संनिहितः सोऽनु तदा दा. वायितं रुषा // रोषे क्षीणे वियोगश्च / चर्तुः संवर्तकायते // 20 / / पादं निमि किं वाभि / वि. 672 | पं वाथ नजे चितां / / इति चिंताशताक्रांता / नैषीद् अःखेन सा दिनान् // 21 // अयस माप जामाता / सशंगारं मतंगजं // आरूढः पुरि बत्राम / पौरश्रीवीक्षणोद्यमी // // कपिलाश्लिष्ट थयो , केमके रात्री तो श्वेत तथा श्याम पण होय बे, परंतु दिवस तो एकरूपवादोज होय जे. // 17 // प्रथम तो मने पुरुषोपते द्वेषज थयों हतो, बने पडी प्रियतमप्रते हुं कोपायमान थ, अने पछी मने गरिनो वियोग थयो, माटे सदानी दुःखणी एवी मने धिक्कार . // 15 // ज्यारे ते मारी नजदीक हतो, त्यारे क्रोधयी हुं दावानलसरखी थ पडी हती, अने ज्यारे मारो कोध शांत थयो त्यारे स्वामिनो आ वियोग वंटोळीयासमान थ पड्यो . // 20 // शं या मारो पग हुँ कापी ना? अथवा फेर खालं? के चितामां बळी मरूं? एवी रीते सेंकडोगमे चिंता थी | दवाश्यकी ते दुःखे दिवसो कहाडवा लागी...॥ 11 / / हवे ते धम्मिल राजानो जमा थवाथी / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust