________________ 662 धम्मि| ऽन्याश्लेषहृल्लेखात्-त्रासिताशेषःखयोः // ससाद्यामस्य जामित्वं / चतुर्यामापि यामिनी // 7 // / सार्थ मूत्यैव विव्रतोर्मेदं / हृदा त्वेकत्वशालिनोः // जग्मुः कतिचिदज्ञातो-दयास्ता दिवसास्तयोः / // 33 // सोऽन्यदा प्रेमकलहे। कलहेमडविं प्रियां // जगौ वसंततिलके / मा जुस्त्वमतिकोपना | // 7 // वसंततिलकानाम / रिमन्युरमन्यत // साकस्मादपि तद्दिा-जोलसंघटदुस्सहं // // 35 // भर्तृरागः क्रुधोत-देहलोहित्यदंभतः // बहिर्वासमदात्तस्या / निर्गश्चित्तपत्तनात् // गी. // 72 // फक्त शरीरथीज जेदवाळा, परंतु हृदयथी एकरूप थयेला एवा तेज बन्नेना नदया स्तना छानविनानाज केटलाक दिवसो पसार थया. // 13 // हवे एक वखते प्रेमकलहने प्रसंगे मनोहर स्वर्णसरखी कांतिवाळी ते कमलापते तेणे कडं के, घरे वसंततिलका! तुं अति कोपा. यमान न था? // 14 // एवी रीते (धम्मिलना मुखथी निकळेला ) वसंततिलकाना नामने अ. त्यंत गुस्से थयेली ते कमला विजळीनो गोगे पडवासरखं दुस्सह मानवा लागी. // 55 // क्रो. धथी नत्पन्न थयेली शरीरनी लालाशना मिषथी भर्तारपरना रागे तेणीना चित्तरूपी नगरमांथी | निकलीने बहार पमाव नाख्यो. // 76 // पनी हृदयमांथी हारने तोडतीथकी तथा हाथरूपी पल्ल PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust