________________ धम्मिः // 16 // त्रोटयंती हृदो हारं / धुन्वती पाणिपल्लवं // किरती रोषहुंकारान् / सोपालंजत धम्मिलं // .... // // चिरं स्वचित्तमौ या / त्वया धूर्त निधीयता // तदाविःकरणे तेऽद्य / रसना पिशुनाय ते // 70 // यन्मया रमसे धूर्त / व्यवहारः स केवलं // तत्वतो वसति स्वांते / वसंततिलका तव 663 // // ज्ञातोऽसि हदि तामेव / न्यस्य मां रमयन्नसि // तदेवं नापसे यस्मा -दुझारो नक्तसं. निनः // 70 // वृथैव नार्यो निंद्यते / ग्रंयकारैः पुरातनैः // निंदाास्तु नरा एव / येषु युष्माहवोने कंपावतीयकी अने क्रोधथी हुंकारा करतीयकी ते धम्मिलने ठपको देवा लागी के, // 7 // अरे! धूर्त ! पोताना चित्तरूपी मीमां जेणीने तें निधाननीपेठे राखी मेली हती, तेणीने प्रगट करवामां बाजे तारी जीभेज चाडी खाधी जे. // 70 // वळी हे धूर्त : तुं मारीसाथे जे रमे , ते तो केवल व्यवहारमात्रज ने, परंतु तत्वथी तो तारा हृदयमां वसंततिलकाज वस) रही जे. // // हवे मने मालुम पड्युं के हृदयमां तो तेणीनेज चिंतवीने तुं मारीसाथे रमे , अने तेथीजया. म बोले , केमके जोजनसरखो उटकार आवे . // 7 // पुरातन ग्रंथकारो स्त्रीजनी फोकट| ज निंदा करे , निंदालायक तो पुरुषोज , के जेजमां ताराजेवा बुचाउनो समावेश थाय | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust