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________________ सार्थ धम्मि- शाः शमः // 70 // जज तामेव सुनगां / मया कितव किं तव // इत्युक्त्वा यावकार्येण | सा / पादेन जघान तं / / 71 // ये दृप्ता ये सदाचारा / ये च नारदमा अवि // स्त्रीनिस्तेऽप्यनियंते / रश्मिन्निवृषणा श्व // 7 // महेला अवहीलंति / मार्दवत्राजिनं जनं // आरोहंति तरोर्मूर्ध्नि / 664 पश्य वख्यः क्षमावः // 3 // वर्षत्युग्रं बाणजातं / पार्णिघातं प्रकुर्वती // न चाटुनिरपि प्राप। शांति सारिचम स्वि // 4 // निंदन्नामांतरोभार–व्यसनां रसनां निजां // हसन्नतः प्रियाघाटये / बे. // // माटे अरे बुच्चा! तेज सुजगाने हवे तुं जज? मारीसाथे तारे शुं प्रयोजन ? ए. म कहीने पळताथी नींजेला पगवडे तेणीए तेने लात मारी. // 71 // जे पुरुषो या पृथ्वीमां अहंकारी, सदाचारी तथा जार उपामवामाटे पण समर्थ डे, तेन पण दोरीजथी जेम बढ्दो तेम स्त्रीनथी पराभव पामे . / / 72 // कोमळता धरनारा पुरुषने स्त्रीज पजवे , जुन के पृथ्वीमांथी उत्पन्न थयेला (दमावाळा ) वृदाना बेक मथाळापर वेलमी चडी जाय . // 3 // (दु. र्वचनोरूपी) नयंकर बाणोने वरसती तथा पाटु मारती एवी शत्रुनी सेनानीपेठे ते कमला ध. म्मिलना कालावालाथी पण शांत थ नहि. // 4 // हवे ते धम्मिल बीजं नाम लेवाना व्यस P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036433
Book TitleDhamil Charitra Bhashantar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1914
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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