________________ 557 धम्मिः क्पथं कथं // 67 // कंपखेदादिकान नावान् / सात्विकान्नाटयन्नंथ // सोमवृतिः समुभिन्न-विकाः / रस्तामनाषत // 60 // लेखाद्य तेऽरविंदास्ये / दास्येऽहं शृण्वदः पुनः // लावण्यसरसि स्वांगे / | मां क्रीडासारसीकुरु // ६ए // तस्येति दुःश्रवं श्रुत्वा / वचनं सा व्यचिंतयत् / / हंत यचिंतितं पूर्व || तन्मे सादापस्थितं // 70 // पश्य मर्माविधं कर्म / स्मरवीरस्य कीदृशं // श्रोत्रियं वा स्त्रियं | वापि / यो निघ्ननैव मुंचति // 71 // श्दमन्यादृशं लोके / तामसं कामसंन / मुह्यत्येवंविधा यहोय तो दरिद्रीने जेम कामधेनु तेम या स्त्री पोतानी मेळेज मारीपासे क्याथी आवे! / / 67 // पजी ते सोमञ्चति ब्राह्मण कंप तथा पसीना आदिक कामविकारना सात्विक नावाने प्रकट करतोथको कामातुर थ बोल्यो के, // 67 // हे कमलमुखि! हुं तने ते पत्रयादिक अापीश, परंतु एक वात सांजळ? लावण्यना तनवसरखां तारां शरीरमां मने कीमा करनार सारससरखो कर? / / // 6 // एवी रीतनुं तेनुं नहि सांगलवालायक वचन सांजळीने ते विचारखा लागी के, अरे! पूर्व में जे.चिंतव्यु हतुं तेज सादात मारी नजरे यावी ननु. // 70 // अरे! जुन तो या का| मसुनटर्नु मर्मस्थानोने नेदनाएं केवू कार्य ! के जे वेद जाणनार ब्राह्मणने अथवा स्त्रीने पण PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust