________________ धाम्म-|त्र / श्रुतदीपकरा अपि // 72 // यदीडशोऽपि कामी स्यात् / को दोषस्तर्हि दुर्धियां / / ममो यत्र / | जले नाग-स्तत्र गगस्य का कथा // 73 // अथ कामतमस्तस्य / नेत्तुं चित्तगुहागतं // वितेने | वाङ्मयं ज्योति-र्दीप्रांगी दीपिकेव सा // 14 // वर्णज्येष्ट कुलश्रेष्ट / विशिष्टश्रुतपारग // किं प्रा. 557 कृतजनक्षुमं / पंथानमनुवर्तसे // 35 // अंतः कचवराकीर्ण / बहिश्च मसृणत्वचि // खरीपुरीषसं. पोताना कपाटामांथी छोडतो नथी. // 71 // दुनियामां कामथी नत्पन्न थयेवू या अंधकार वि. चित्र प्रकारनुं , के जेथी ज्ञानरूपी दीपक हाथमां होवा तां पण यावा माणसो दिग्मूढ बनी जाय . // 7 // ज्यारे थावो माणस पण कामी थाय त्यारे बीजा चुधिजनो शो दोष ? केमके जे जलमां हाथी मुब्यो त्यां बकरानी शुं वात करवी ? // 53 // हवे तेना मनरूपी गुफामां रहेला कामरूपी अंधकारने नेदवामाटे दीपकनीपेठे तेजस्वी शरीरवाळी ते शीलवती वचनरूपी प्रकाश विस्तारखा लागी के, // 7 // हे उत्तम जातिकुलवाळा! तथा श्रेष्ट शास्त्रोना पारंगामी! नीच माणसोने योग्य एवा मार्गनुं तुं शामाटे अनुवर्तन करे ? // 55 // अंदर मलीन कच| राथी नरेला तथा बहारथी कोमळ चाममीवाळां एवां गधेमीनां लीडांसरखां स्त्रीनां शरीरमां तुं मोः / un Aaradnak Trust