________________ धम्मि| काशे / मा मुढ स्त्रीशरीरके // 16 // परस्त्रीसंगतिर्मान-नंगाय महतामपि / / ऋषिपत्नीरतेराप / / | किं फलं नाकिनायकः / / 77 // अधर्मकर्म यन्मूढ / कुरुषे यौवनांधितः // अंतःस्थशिखिशाखीव / / | वीदयसे तेन वार्ड के // 70 // तदजस्रस्रवगत्रा-मृतधौतामलां निजां // ईदृग्दुर्वाक्यपंकेन / एण रसनां मा कलंकय // 45 // वाचस्तस्या श्मा मेघ-मुक्ता आप वोज्ज्वलाः // न तचित्ततडा| गेऽस्थुः / स्मरगोधेररंधिते // 70 // विजोऽवादीदिमा उक्ती-जडे संवृणु संवा // वेभि सर्वमिदं ह कर नहि. // 16 // परस्त्रीनो संग महान पुरुषोना माननो पण नंग करे , केमके ऋषिपत्नी. ने जोगववाथी इंडने पण शुं फल मब्युं ? // 7 // वळी हे मूढ! यौवनथी अंध थने जे तं अधर्मनुं कार्य करे ने, तेथी वृद्धावस्थामां तुं अंदर रहेला अभिवान वृक्षसरखो देखाश्श. / / // // माटे निरंतर करता शास्त्रामृतथी धोवावडे करीने निर्मल थयेली तारी पोतानी जीभने यावां दुर्वचनरूपी कादवथी कलंकित कर नहि. // 7 // कामदेवरूपी गरनारुं बंध नहि करखा. थी तेना चित्तरूपी तळावमां मेधे छोडेला जलसरखी तेणीनी यावी उज्ज्वल वाणी पण टकी शकी नहि. // 70 // त्यारे ते ब्राह्मण बोल्यो के हे न था तारी वाणी हवे बंध राख, यास P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust