________________ सार्थ घम्मि- व कुरंगीव / सा सुखं सुषुवे सुतं / / सोऽप्यानीय लतागुटमां-स्तस्या निर्यातमातनोत् // 7 // न / वप्रसवगंधोऽस्या / वनस्थं व्याघमाह्वयत् // स जन्मांतरवैरीव / कांतं प्रथममग्रहीत / / 7 // तां द. शां प्रेयसो वीदय / वसुदत्तापि तापिनी // मूर्बामानंच पंचत्व-नाट्यप्रस्तावनामिव // ए // स्त. 67 न्यं स्तनंधयो जात-मात्रो मात्रोशितः पुरः // अविंदंश्च मृतः प्रात-मूर्गभंगे रुरोद सा // 10 // एकांते कांत कांतारे / कांतां श्वापदसापदि // विहाय हा के लीनोऽसि / जल्प जल्प हृदीश्वर // वनने पण मनने आनंद आपनारं वासजुवन मानवा लागी. // 6 // पछी त्यांज हरिणीनीपेठे तेणीए सुखेथी पुत्रने जन्म थाप्यो, त्यारे धनदेवे पण वेलमीनना गुबान त्यां लावीने तेणी. ने वायुना उपवथी रहित करी. // 7 // एवामां तेणीना नवीन प्रसवना गंधे वनमा रहेला वा. घने वोलाव्यो, तथा जन्मांतरना वैरीनीपेठे तेणे प्रथम तो तेना भर्तारनेज ग्रहण को. // 7 // पोताना स्वामीनी ते दशा जोश्ने खेद पामेली वसुदत्ता पण मृत्युरूपी नाटकनी प्रस्तावनासरखी मर्ग पामी. // // जन्मतांज माताए पासे गेमी दीधेलो ते धावणो बालक धावण नहि मळ. वाथी मृत्यु पाम्यो, पडी प्रनाते ज्यारे तेनी मूर्ग उतरी सारे ते रडवा लागी के, // 10 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust