________________ 62 धम्मिः // 11 // तादृक्प्रेमगुणस्थेम / क्षेमंकर गणाकर // यत्रबायोपमं दत्वा। दर्शनं यासि यानि किं मा // 15 // जानासि व्याघ्र रे पाल-परीदां वनवास्यपि // मां मुक्त्वा निर्गुणां गौर-गुणं यत्प्रियमग्र हीः // 13 // रे जात सुविनीतेषु / त्वमेवैकशिरोमणिः // यदशक्तोऽपि जनक-क्षुमं मामशिश्रयः // 14 // धिग्मामात्मरुचिध्वस्त-गुरुशिदासुखासिकां // विषवल्लीमिव प्रेय-स्तनयदयकारिणी कांत ! जंगली पशुननी आपदावाळा था वनमां मने एकली गेमीने बरे! तुं क्यां चाल्यो ग. यो! हे हृदीश्वर! तुं बोल बोल ? // 11 // अरे! एवा प्रेमरूपी गुणमां निश्चल थयेला हे क्षेमं. कर! हे गुणाकर! वादळ्नी गयासरखं दर्शन देश्ने तुं केम चाल्यो जाय ? // 12 // अरे वा. घ! तु जंगली उतां पण पातनी परीदा जाणे , केमके तें मने निर्गुणीने गेडीने मारा गुणवान प्रियतमने ग्रहण कर्यो. // 13 // अरे पुत्र! विनीतोमां पण तुंज एक शिरोमणि गे, केमके यशक्त जतां पण तें पोताना पितानो मार्ग ग्रहण कर्यो. // 14 // अरे! फक्त स्वेगचारथी सा. सुससरानी शिखामणरूपी मिठाइने तजनारी तथा विषवल्लीनीपेठे पतिपुत्रनो क्षय करनारी एवी मने धिक्कार ! // 15 // एवी रीते शोकथी व्याकुल थयेली ते वसुदत्ता बन्ने पुत्रोने लेश्ने चा. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust