________________ 506 धाम- वीदय साटोपं / पुनरूचे महाजनः // 7 // ऋजुस्वन्नाव मा वत्स-तो भाणीरिदं वचः // न वे. मासि प्रहरिष्यति / पुरं बलदृशो विषः // 7 // पूर्व विज्ञप्तिमेतेषां / प्रमाणय गुणालय // भुत्तुट्पी | डास्पृशां वेला-विलंबः सहते न नः // // तेनाथ प्रहिता वेश्म / समुद्रस्य स्वमंत्रिणः / ग. त्वा निरीक्ष्य संवेक्ष्य / यथादृष्टं बनापिरे // 10 // स्वामिन् समुदसंबंधि-धनस्याशा विमुच्यतां // | तस्योकः साधुशालाव-दिदानीमस्त्यकिंचनं // 11 // तत् श्रुत्वा विस्मितः प्राह / कुमारः प्रत्ययो फरीथी कडं के / / 7 // अरे नोळा ! करमत करीने तुं एम बोलमां ? तने हजु खबर नथी के. मके कदाच लाग जोनारा शत्रुन था नगर ले लेशे. // 7 // माटे हे गुणवान! प्रथम श्रा लोकोनी विनंति तु स्वीकार ? केमके अमाराथी भुख्या तरस्या विलंब सहन थ शकशे नहि.॥ // // पनी ते राजकुमारे पोताना हजुरी ने समुद्रदत्तने घेर मोकल्या, तेनए पण त्यां जश जो तपासीने जेवु हतुं तेवू यावीने कह्यु के, // 10 // हे स्वामी! तमारे समुदत्त शेग्ना ध. ननी याशा छोकी देवी, केमके तेनुं घर तो साधुना नपाश्रयनीपेठे कशी पण मिल्कतविनानुं . // 11 // ते सांजळीने विस्मय पामेलो कुमार बोल्यो के मने तमारां वचनपर विश्वास थावतो | Jun Gun Aaradhak Trust