________________ धम्मि न. मे // वाचि युष्माकमाकर्णि / यतोऽसौ प्राग्महाधनः // 12 // स्वयं गतोऽय सोऽप्यात-फलः / पुष्पफुमोपमं // तद्देश्म सर्वथा निःश्रिा दृष्ट्वा शीलवती जगौ // 13 // कथयावितथं नई। सा विचतिः क ते गता // पश्चादपि हि नोत्स्यते / सहस्रादा महीनुजः // 14 // साथोचे वत्स द्र. व्याशा वेशादेशांतरंप्रति // पति, प्रस्थितः सर्व / गृहसारं सहानयत् // 15 // केवलं मां च मंजूषां / चेमां नारकरी पथि // गृहे मुमोच को वेत्ति / यदस्या थस्ति कोटरे // 16 // परमार्थानथी, केमके पूर्व ते महाधनाढ्य संजाळायो बे. // 12 // परी ते कुमारे पोते त्यां जश्ने पुष्पफल तोमी लीधेला वृक्षासरखां तेना घरने सर्वथा धनरहित जोश्ने शीलवतीने कर्जा के // 13 // हे न! तुं सत्य कहे ? तारी समृधि क्यां गश्? केमके हजारो अांखोवाला राजानने पालथी पण तेनी खबर पडी जशे. // 14 // त्यारे ते बोली के हे वत्स! द्रव्य मेलववानी याशाना था. वेशथी ज्यारे मारा स्वामीए देशांतरमा प्रस्थान कर्यु त्यारे घरनी तमाम मीटकत ते पोतानी सा. थे ले गया . // 15 // केवल मने अने मार्गमा अति बोजो करनारी या पेटीने ते घरमां मुकी गया बे, परंतु कोने खबर के था पेटीनी अंदर शुं हशे! // 16 // पनी परमार्थ नहि जा. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust