________________ मिभृद्यत्र / रिकूटः समेखलः // सा मंजूषानवद्युक्तं / वोट्टणां नारकारणं // 17 / / ऋरिनारेयमि | युक्त-स्तैः प्रीतो पर्जगौ // रत्नवर्णादिन्निः पूर्णा / मंजूषेयं नविष्यति // 15 // स्वं धामैत्य 500 सनालोके / लोकमाने सकौतुकं // नित्वाद्यं तालकमसौ / मंजूषामुदघाटयत् // 20 // ततस्तत्र | त्यवदारा-ब्रह्मचिह्नविनाकृतिः // प्राच्यात्परिचयादयः / प्रादुरासीत पुरोहितः // 21 // कथ्यम णनारा घने पेटी जोश्ने खुश थयेला राजकुमारे हुकम करवाथी तेना नोकरोए ते पेटी मस्तकपर नपाडी. // 17 // जे पेटीमां घणा कूटवाळो (शिखरोवाळो ) तथा कंदोरावाने ( मेखलावाळो) राजा (पर्वत) बेठेलो, ते पेटी जंचकनारानने जे ज़ार करनारी थ ते युक्तज जे. // 10 // अहो! था तो बहु नारवाळी ! एम तेजए कहेवाथी खुशी थयेलो राजकुमार बोल्यो के खरेखर या पेटी रत्न तथा स्वर्ण यादिकथी नरेली होशे. // 15 // पछी तेणे पोताने घेर भावीने सजासदोनी नजरे कौतुकपूर्वक पहेर्बु तालुं नांगीने ते पेटी उघाडी. // 20 // त्यारे ते. | ना खानामांथी ब्रह्मचिह्नविनानी पाकातवाने तथा पूर्वना परिचयथी जळखी शकाय एवो पुरोहित / P.P.AC Gunratnasuri M.S. un en Aaradhelma