________________ धान- साहसं // 5 // निषेधयति मां कश्चि-मृत्योर्मोऽथवा सुरुः // चिंतयंतीति सापश्यत् / पुरस्तः / मारुतले मुनिं / / 76 // तं वीदय विस्मिता वीदा-पन्नतां सा विद्राण तां // ववंदे तत्पदद्वंद-मद सुखदायकं // 7 // मुनिरूचे महानागे / किमेवं दुःखभागसि // अपायः किमयं काये / विमाये क्रियते त्वया // // सुख दुःख नवेन्नृणां / नवे कर्मविपाकतः // अपि पाकरिपुः कर्म-विसो नाखे ने तेवामां एवो अवाज थयो के हे मुग्धे तुं साहस कर नहि. // 5 // मने कोश्मनुष्य अथवा देव मृत्युथी निषेध करे , एम विचारतांथकां तेणीए श्रगामीना नागमां वृदानी. चे एक मुनिने जोया. // 6 // तेमने जोश्ने विस्मय पामेली ते कन्या पोतानो ते गजराट छो. डीने अनुपम सुख देनारा तेमना बन्ने चरणोने जश् नमी. // 7 // सारे मुनि बोल्या के हे महानाग्यशाली! तुं थाम शामाटे सुःखी जणाय ? वळी हे निष्कपटी! तुं था शरीरनो शामाटे विनाश करे ? || 6 // श्रा संसारमा प्राणीजने सुख फुःख कर्मोना विपाकथी थाय , कर्मोना विपाकथी इंऊ पण मुक्त थ शकतो नथी. // नए / माटे | आ. के. खा. कोषा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust