________________ धम्मि- दिने गृहे // अपश्यन् दयितां नेत्रोत्सवां पब मातरं // ए७ // सावदत्पुत्र पुत्रान्यां / साकमकी चैव दैवतः // वधूर्विधूतशिदा न-श्वचालोऊयिनीप्रति // ए // निंदनंतर्मनस्तस्या। अविमृ. श्य विधेयतां // कलत्रपुत्रस्नेहेन / सोऽपि तामनुजग्मिवान // ए // कथं पथि प्रिये यासि / क६२५| थं वा स्थास्यतः सुतौ // इति ध्यानजुषस्तस्य / नाध्वक्वेशो मनोऽदुनोत् / / 2500 // ब्रमन्ननुक्रम तस्या / शरण्यामरण्यगां // खेद्यमानां तनूजाच्या-मपश्यत्प्रेयसी पुरः // 1 // ततः प्रमुदितः खां नदेव पण घेर याव्यो, अने त्यां नेत्रोने आनंद आपनारी पोतानी स्त्रीने नहि जोवाथी तेणे (पोतानी) माताने पूज्यु. // 7 // त्यारे ते बोली के हे पुत्र! बाजेज दैवयोगे अमारी शि. खामण नहि मानीने ते बन्ने पुत्रोने साथे लेश्ने नायिनीतरफ गश् . ॥.ए // ते सांजळी मनमा तेणीना अविचारी कार्यने निंदतोथको ते धनदेव पण स्त्री बने पुत्रना स्नेहने लीधे ते. पीनी पाउल गयो. // ए० // हे प्रिये ! तुं मार्गमा शारीते जश्श? अथवा पुत्रोना शा हाल थशे? एम विचारतांथका मार्गना थाके तेना मनने दुखाव्यु नहि. // श्ए०० // पनी तेणीने पर ले पगले चालता एवा-तेणे थाधारविना वनमा रहेली तथा बन्ने पुत्रोवडे खेद पामती एवी पो. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust