________________ धम्नि- तंसं व्याधकल्पितं // 40 // ववेव वार्ताः सरसाः / सोऽकार्यत तथा तया // यथाबुध्यत दुर्बुधिसाधने यांतीमपि यामिनीं // 41 // अद्य ते प्रियमित्रस्य / चिराद्गृहमुपेयुषः // क्रियते या मया न | क्तिः / सा सर्वापि तनीयसी // 42 // इत्युक्त्वा स्नानसामग्रीं / लघुहस्ता व्यत्ति सा // ततो वि५७२/ प्रोऽप्यभिप्रेत–प्राप्तप्रत्ययनरत // 43 // अहो कीदृविवेकोऽस्या / अहो स्नेहलता मयि // नी. तो ध्यायन्निति स्नान-पी सं शव्या तया // 4 // निषिधमपि रात्रौ स / स्वानं तस्या गिरायासक्त थयेलो हरिण पाराधीए पाथरेला पाशने जाणी शकतो नथी. // 40 // पजी स्त्रीनीपेठे तेणीए तेने रसयुक्त वार्तालापमां एवो तो गरकाव करी दीधो के जेथी ते ऽर्बुडीए जती रात्री. ने पण जाणी नहि. // 41 // बाजे घणे काळे घेर यावेलो श्रने मारा स्वामीनो मित्र एवो जे तुं, तेनी हुँ जे नक्ति करुं ते थोमी. // 42 // एम कहीने तेणीए तुरतातुरत तेने स्नान कर वानी सामग्री तैयार करी, त्यारे ते ब्राह्मण पण मनोवांजितनी प्राप्तिमाटे खातरीवाळो थयो. // // 43 // अहो! थानो विवेक केवो ! मारामां तेणीनु स्नेहालपणुं केवु ने! एम विचारता ते | ब्राह्मणने ते चालाक शीलवती स्नान करवाना बाजोउपर लावी. // 44 // पनी तेणीना कहेवा. P.P.AC.Gunratnasuria Jun Gun Aaradhak Trust