________________ धम्मि। धर्मों जगन्मान्या-वुदार व संपदि // 7 // पुनः सापनसत्वाचू-धदा प्रीतिप्रदा तदा // धन| देवो धनप्राप्त्यै / जगाम विषयांतरं // जज | वसुदत्तान्यदा कंचि-द्यांतमुजायिनीप्रति // सार्थ विझा परिझाय / श्वशुरावित्यजिदपत् // 0 // अहं याता विशालायां / मिलनाय पितुश्चिरात् // सांप्रतं सार्थसामय्या-मनुझां स्पृहयामि वां // ए०॥ यवोचतां ततो न्याय-जासुरं श्वशुरौ वचः // वधु तावदिहैवाख / यावदेति तवं प्रियः // 1 // त्वं गुर्वी दुरतोऽवंती। सार्थस्त्वनुपलदितः // त्पन्न थया. // 7 // वळी प्रीति थापनारी ते वसुदत्ता ज्यारे फरीने गर्भवती थर, त्यारे धनदेव धन कमावामाटे देशांतरमा गयो. // 7 // पनी एक दिवसे नायिनीतरफ जता कोश्क साथने जाणीने ते वसुदत्ताए पोताना सासुससराने विनंति करी के, ॥Gण| हमणा सथवारो , मा. टे हं घणे काळे मारा पिताने मलवामाटे विशाला नगरीए जश्श, अने तेमाटे तमारी साझा नी है इला राखु बुं. // 50 // त्यारे तेणीना सासुससराए न्याययुक्त वचन कह्यु के, हे वधू! ज्यांसुधी तारो स्वामी अहीं आवे त्यांसुधी तुं यहींज रहे. // 1 // वळी तुं गर्नवंती , अने अवंती नगरी दूर , तेमज या सथवारो पण अजाण्यो बे, माटे त्रिदोषवाळा यावा प्रयाणमाटे Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.