________________ धम्मि-। दति क्षेत्रं / चेनिहति पिता सुतं // जलं चेज्ज्वालयत्यंग / दीपः किरति चेत्तमः // 1 // चेन्मुं. मा चति घनोंगारां-श्चेन्मऊयति तारकः // राजा चेत्कुरुतेऽन्यायं / का तत्र स्यात्प्रतिक्रिया // 2 // | रूपं मूलमनर्थानां / मयि किं विदधे विधे // मांसलत्वमज़ाया हि / परानवनिबंधनं // 23 // प. रीदां मम शीलस्य / किं कुर्वनसि दैव रे // यदमून रागिणो राग-दुर्विधायां मयि व्यधाः ॥श्या निविशे वायुविवशे / वह्नौ जदिमि वा विषं // निये जिह्वामपि जित्वा / शीलं झुपामि नो पुनः जे रदको ने तेज मारो विनाश करवाने तत्पर थया ने. // 10 // केमके जेम वाम पोतेज जो खेतरने खाय, पिताज जो पुत्रने मारे, जलज जो शरीरने बाळे, अने दीपकज जो अंधकार का रे, // 21 // मेघ जो अंगारानी वृष्टि वरसावे, तारुज जो मुबाडे, तेम जो राजाज अन्याय करे तो पनी त्यां शुं इलाज करी शकाय!! // // वळी हे विधाता! अनर्थोना मूलजेवू मारुं रूप तें शामाटे बनाव्यु ? केमके बकरीनुं पुष्टपणुं तेना पोतानाज पराभवना कारणरूप . // 3 // रे दैव! तुं शुं मारां शीलव्रतनी परीदा करे ? के जेथी विरक्त एवी जे हुं तेनापते आ लो. | कोने तें रागी बनाव्या . ॥श्या वायुथी वृद्धि पामेला अमिमां पडीश, फेर खाशा, अथवा जी |