________________ घमि- // 25 / / वृथानुशिष्टिरप्यत्र / वृष्टिर्दग्ध श्व जुमे // अयं बोधयितुं शक्यो / न महोपक्रम विना।। // 26 // ध्यायंतीमिति तामेक-चित्तां वीदय विचदाणः // ममोत्तरं न दत्से कि-मित्यनाषिष्ट . पतिः // 27 // स्वप्रतिष्टाधिकं प्राप्य / प्रसादं तव बुधव // उपिंजलानवं तेन / शून्येवास्मीति 26] | सावदत् // 20 // यत्त्वयाजाषि पाल / तत्स्त्रीणामतिसंमतं // स्पर्शी दूरेऽस्तु नाग्येन / लन्या यागपि तावकी // 27 // परमत्रावयोः क्रीमा सक्तयोरमले कुले // जनापवादो नविता / स हि न कचरीने पण मरी जश, परंतु मारां शीलने हुँ खंडित करीश नहि. // 25 // बळेलां वृक्षप्रते जेम मेघवृष्टि तेम या राजाने प्रतिबोध आपवो नकामो मे, मोटा नपायविना आने समजावीशकाय तेम नथी. // 16 // एम विचारमांज एक चित्तवाळी तेणीने जोश्ने ते हुशियार राजा बो. ब्यो के तुं मने उत्तर केम अापती नथी? // 21 // त्यारे ते बोली के हे राजन् ! गजा नपरांत मारापर यापनी कृपा थवाथी हुँ हर्षवेलीनीपेठे शून्यजेवी थर गइ बु. // 2 // वळी हे राजन् ! आपे जे कडं जे ते स्त्रीनने अतिप्रिय होय , यापनो स्पर्श तो एकबाजु रह्यो, परंतु आपसाथे | वात करवानुं पण भाग्यश्रीज मळे . // 25 // परंतु आपणे जो यहीं विषयक्रीडामां यासक्त P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust