________________ धम्मि-| रक्ष्यः प्रयत्नतः // 30 // तदद्यैव निशीथिन्यां / तुर्ये यामे ममालयं // देवपादाः समायांतु / केनाः | प्यनुपलदिताः // 31 // पेनाथ विसृष्टा सा / सौवं सद्म रयादयात् // विमृश्य कंचनोपायं / श्व: श्रूमेवमवोचत // 32 // मातरद्य निशि प्रत्या-सन्ने त्वं निवसेहे // प्रगेऽरुणोदयात्पूर्व-मीयाः सापि तथाकरोत् // 33 // विनातिमहतीमेकां / मंजूषां शीलवत्यपि // समस्तं गृहवस्तु खं / न्य स्यदासन्नवेश्मनि // 34 // पिनघशीलसन्नाहा / धीरिमोडुनधारिणी // सुन्नटीव स्वयं सत्व-धाम थशुं तो आपणा निर्मल कुलमां लोकापवाद थशे, माटे तेनुं आपणे प्रयत्नपूर्वक रक्षण कर जोश्ये. // 30 // माटे बाजेज रात्रिने चोथे पहोरे थापे को पण जाणे नहि तेम मारे धेर पधार. // 31 // हवे राजाए रजा थापवाथी ते तुरत पोताने घेर यावी, तथा कक उपाय चिं. | तवीने तेणीए सासुने कडं के, // 32 // हे माताजी! अाजे रात्रिए तमारे या नजीकना घरमां रहे, तथा प्रजाते सूर्योदय पहेलां यहीं ववं, त्यारे तेणीए पण तेमज कयु. // 33 // पनी एक मोटी पेटीशिवायनी सघली पोताना घरनी वस्तु शीलवतीए ते नजीकना घरमां मेली दीधी. / // 34 // पडी पोते शीलरूपी बखतर पहेरीने तथा धैर्यतारूपी जमवानुं साधन धरनारी ते महा. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Juri Gun Aaradhak Trust