________________ धम्मि। सरसीव सरोरुहं // 60 // सलीलंगमनो धीर-ध्वनिः सर्वांगसुंदरः // स्फुटं कुटुंबचारस्य / धुरीण ...| व सोऽवृधत् / / 61 // एवं दिनेष्वनेकेषु / व्रजत्सु लवलीलया // चतुर्सानधरस्तत्रा–ययौ धर्म रुचिर्मनिः // 6 // सदोद्योतमया लोक-स्फुरत्तमतमश्विदः // यं सेवंते सुविहिताः / किरणां श्व 723 जास्करं // 63 // पारदकेण तपसा | विकारास्तस्करा व // यत्पुरारिता नैव / प्रवेष्टुं पुनरी शते // 64 // यहाग्गांनीर्यमध्येतुं / घनो घर्षरितध्वनिः / / जलयोगादसंप्राप्त विद्यो वहति कालि. युक्त ध्वनिवाळो तथा सर्व शरीरे शोनतो एवो ते पुत्र प्रकटरीते कुटुंबनो भार नपामनारनीपेठे वृधि पामवा लाग्यो. // 61 // एवी रीते क्षणनीपेठे अनेक दिवसो गयावाद त्यां चार ज्ञान धरनारा धर्मरुचि नामे मुनि पधार्या. // 6 // किरणो जेम सूर्यने तेम ते मुनिने हमेशां उद्योत. वाळा अने दुनियामां अत्यंत फेलाता अझानरूपी अंधकारनो नाश करनारा सुविहित मुनि सेवता हता. // 63 // तपरूपी धारदकथी मरेला विकारो तस्करोनीपेठे तेना शरीररूपी नगरथी दर गयेला होवाथी तेमां फरीने प्रवेशज करी शकता नथी. // 64 / / वळी जे मुनिनी वाणीनी गंजीरतानो अभ्यास करखामाटे घर्घरध्वनिवाळो मेघ विद्या न मलवाथी जलना योगथी काळाश Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.