SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ घम्मि तनपातकं // 2 // श्रमीनिर्वचनस्तस्य / घृतवजीतलैरपि / ज्वरीव तापमधिकं / दधानः प्रालपः / पिता // 3 // रे इष्ट किं वयं जैना / यदेवं वर्ण्यते दया // न हि चैत्रोत्सवे मैत्र-कुलाचारः | प्रवर्त्तते // 24 // पितुः पितामहस्यापि / त्यजन् मागे सुतबलात / / त्वमरिष्टं कुलेऽस्माकं / वटे प्लः दफलं यथा // 25 // प्रपोष्यंते निजप्राणे-ये वयस्याश्चिरागताः // प्ररप्राणान् ददत्तेषां / शंकसे कोऽसि रे शव // 26 // निर्दयेनेति तेनोक्त्वा / प्रहत्य लगुडादिनिः // दयावानिति बालोऽसौ / सीने दूर थ जाय बे, परंतु जीवहिंसाथी नत्पन्न थयेवू पाप तो श्रात्मानेज सहन क पडे जे. // // एवी रीतनां तेनां घृतसरखां शीतल वचनोथी पण ज्वराकुल माणसनीपेठे अधिक खेदने धारण करनारो तेनो पिता बोल्यो के, // 23 // अरे दुष्ट! शुं थापणे जैनीन जीये! के जेथी तुं यावी रीते दयानुं वर्णन करी रह्यो ! केमके चैत्रना नत्सवमां कई मैत्रनो कुलाचार कसतो नथी. // 24 // वामां पीपळाना फलानीपेठे बापदादाना मार्गने गेडनारो तुं खरेखर पुत्रना मिषधी अमारा कुलमां अंगारो जाग्यो बु. // 25 // अरे दुष्ट! घणे काळे पावेला था मि. त्रोने पोताना प्राणोथी पण ज्यारे थापणे पोषवा जोश्ये, त्यारे तेथी नलटुं परना प्राणो था. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036433
Book TitleDhamil Charitra Bhashantar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1914
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy