________________ धम्भि- ष्मिन निधाविव // हीनजाग्या व्यवाहार्ष / हा श्मशानघटीधिया // 63 // रक्षिताशेषविपदं / दत्तः / सार्थ निकंपसंपदं // अमुं कल्पङ्गुमल्प-तुल्यमहमलंनयं // 64 // किं भ्रांता किमु दिङ्मूढा / किं | सोन्मादा किमुन्मदा // अनुवं यददामत्र / चिंतारत्ने दृषदृशं / 65 // सरघावन्ममानेका-क्रोश | देशशतैरपि // मदारिख नाकुन्यत् / सोऽयं जातु मनागपि / / 66 !! तृणदेऽपि पयोदानि-स्ति| // 6 // वखाणवालायक उज्ज्वल गुणोरूपी स्वर्णयी घरेला निधानसरखा था धम्मिलप्रते पण में अभागणीए अरेरे! श्मशाननी हांडलीनी बुधिपूर्वक व्यवहार को. // 63 // सर्व पापदान| थी रदण करनार तथा निश्चल संपदा आपनारा एवा या कल्पवृदने में तुब वृदानी बरोबर ग. एयो. // 64 // शुं हुं ब्रमित थर हती ? के दिग्मूढ बनी हती? के उन्मादी थइ हती? के मदो. न्मत्त थर हती? के या चिंतामणि रत्नमां पण में पबरनी दृष्टि धारण करी ! // 65 // मधमाखनी माफक मारां अनेक आक्रोशोरूपी सेंकमोगमे दंशोथी पण महान वृदानी पेठे आ धम्मिल जरा पण दोन पाम्यो नथी. // 66 // घास देनारप्रते पण दूध यापनारी तिर्यचीसाथे पण मा. री तुलना थर शके तेम नथी, परंतु दृध देनारने पण फेर देनारी नागणीसाथे मारी तुलना कः | un Gunaradhakrist P.P.AC.GunratnasuriM.S.