________________ धम्मि- चरिकोपापि पालं / पराजवति किं प्रजा / / 73 // अथो प्रदर्शयंत्यास्य-विकार कमलालपत् / / मन्ये दोषोऽबलाया मे / सुकरः सखि नाषितुं // 14 // परं विमृश हृदृष्ट्या / प्रेयसोऽपि किमौ. चिती // रतिरंगे पुरः पल्याः / सपत्नीनामकीर्तनं / / 72 // अशस्त्रं मारणं मंत्र-हीनमुच्चाटनं परं 705 // निरनिज्वालनं स्त्रीनिः / सपत्नीनाम मन्यते // 76 // नगिनीत्युच्यमानापि / सपत्नी न शुजा नवेत् // ख्यातापि शर्कराख्यातो / व्यथयत्येव वालुका // 17 // मृत्युस्त्युत्तमो वक्र—नवक्रकचतो नथी. // 7 // अति क्रोध चड्या उतां पण जे माणस पोतानुं स्थान विचारे , तेज विहा. नने, केमके अति कोप पामेली प्रजा पण शुं राजानो परानव करी शके जे? // 53 / / हवे पो. तानो मुख विकार देखामतीथकी कमला बोली के, हे सखि! हुं धारं बुं के मारो अबलानो दोष बोलवो सहेलो . // 4 // परंतु तुं अंतर्दृष्टिथी.विचार के, रतिरंगसमये स्त्रीनीपासे शोकनुं ना. म लेवं ए शुंजारने पण नचित ? // 55 // केमके स्त्रीने शोकना नामने शस्त्रविनाना मा रसरखं, मंत्ररहित महा उच्चाटनसरखं तथा अमिविना बाळवासरखं माने जे. // 16 // बहेन कहेवाया बतां पण स्त्रीने शोक सारी लागती नथी, केमके शर्कराना नामथी प्रख्यात एवी पण वे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust