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________________ 106 धारमः। दारणैः // न तु सापल्यदुःखेन / जीवितव्यमपि स्त्रियां // 7 // खेचर्यथ जगौ न / पुरुषः प्र. सोच भुरुच्यते // न ह्यसौ हृदयेष्टस्य / गृह्णन्नामापराध्यति // 7 // परं प्रियतमावा-कार्येष चरण स्तव // महादंमाई एवेति / श्रुत्वा कमलयोच्यत // 70 // हंहो विद्युल्लतामुख्याः / स्वसारः शृणु. ताखिलाः // अन्यायनाषिणी विद्यु-न्मती रदत रदत // 71 / / सर्वा नगगय मे पादं / स्नपयध्वं कलै लैः // चंदनेन विलिंपध्व-मंचतानुपमैः सुमैः // 2 // अधास्यजिह्मतामेष-श्चेत्पादो मुग्धबु दुःखज थापे . // 9 // वांकी अने नवी करवतथी वेराश्ने म अति उत्तम ने. परंत शोकना शव्यथी स्त्रीजने जीवq पण सारं नथी. // 7 // त्यारे ते विद्याधरी बोली के, हे भ! पुरुष मालीक कहेयाय , अने तेथी ते पोताना हृदयने वहाला माणसनुं नाम लेतां कई अपराधी थतो नथी. // ए || परंतु प्रियतमनी अवज्ञा करनारो था तारो पग महादंडनेज लायक बे, ते सांगली कमला बोली के, // 70 // अरे! विद्युल्लताधादिक सघळी बहेनो! तमो सांना लो? अनुचित बोलनारी या विद्युन्मतीने तमो निवारो? निवारो? // 79 // तमो सर्वे नठीने मारा था चरणने निर्मल जलथी स्नान करावो? चंदनथी तेनुं लेपन करो? तथा अनुपम पुष्पो. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036433
Book TitleDhamil Charitra Bhashantar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1914
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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