________________ धमिलाः // 5 // सोमभृतेः करे प्रेषि / लेखाद्यं प्रेयसा मम // याचितो नार्पयत्येषो / यत्किंचिदना / षते पुनः // ए६ // न्यायश्रीवक्षिपाथोदे / त्वयि धीमति जीवति // हिजो दिजिह्वतां धत्ते / तदयं शिक्षणोचितः // ए७ // अविग्रहग्रहावेश-विवशः सोऽपि तां जगौ // पूर्व स्वांगपरिष्वंग-रंग 563 नाजं विधेहि मां // एए // पश्चात्तदैव दुर्दैवा-घातं गौरि निगृह्य तं // अहं महोपकारिण्या / नविष्याम्यनृणस्तव // 2600 // साथ दध्यौ हहा वाहात्-वस्ताहमवटेऽपतं // निर्गत्य श्रृंखला. कडं के हे प्रनो! सूर्यसरखा थापना प्रनावथी दुष्ट चोरो उपद्रव करता नथी. // 5 // मारा खामीए सोमति ब्राह्मणमारफते पत्र प्रादिक मोकट्युं , परंतु माग्या बतां ते थापतो नथी, | अने जेम तेम बोले . // ए६॥ न्यायलक्ष्मीरूपी वेलडीने मेघसरखा एवा आप बुध्विान हैयात जतां पण ते ब्राह्मण बोलीने फरी जाय बे, माटे तेने शिदा करवी जोश्ये. // ए // त्यारे कामविकारना आवेशथी परवश थयेलो ते कोटवाल तेणीने कहेवा लाग्यो के प्रथम तुं मने तारा शरीरना आलिंगनना रंगवाळो कर? // एए // तथा परी हे गौरी! तेज वखते ते पुष्टने मारी|ने तारो महोपकारीनो हुं अनृणी थश्श. // 2600 // त्यारे ते विचारवा लागी के अरेरे! ह तो P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust