________________ 64 धनि | दृदारसाहत्ते / निर्निमेषदृशौ दृशौ // 44 // तत् श्रुत्वा धम्मिलोचाली-नालीकसदृशाननः / / ददर्श च पुरः शूर-मिव दीप्तं नृपांगजं // 46 // कुमारेणापि सोऽन्येत्य / बाहुन्यां बहु सखजे // श्रापृच्ब्य स्वागतं चक्रे / वास्तव्यं तत्कलास्तवं // 4 // मच्चेतश्चंद्रकांतस्य / द्रविका तावकी क ला // न दिवापि प्रनाभंगं / नजते सौम्य कौतुकं // 4 // श्रुतज्ञता समाख्याता / कलयैव त. | वानया // घनवृष्टिं विना क्वापि / न रंगति तरंगिणी // 4 // पृष्टव्योऽसि कुतः प्रह्व / क ते स्व. कला जोश्ने राजपुत्र तने जोवानी श्वाना रसथी देवसरखनिमेषरहित थांखोने धारण करी र. ह्यो ने // 4 // ते सांजळीने कमलसरखां मुखवाळो धम्मिल ( तेन्नी साथे ) चाल्यो, तथा वागळ तेणे सूर्यसरखा तेजस्वी राजकुमारने जोयो. / / 46 // त्यारे कुमार पण तेनी सामो या. वीने बन्ने हाथोथी तेने खूब नेट्यो, पछी तेनी. खबरअंतर पूरीने तेणे तेनुं सन्मान कर्य, केमके तेनी कलानी स्तुति योग्यज हती. // 4 // हे सौम्य! याश्चर्यनी वात बे के मारा मनरूपी चंद्र कांत मणीने करावनारी तारी या कला दिवसे पण कांतिनो नंग धारण करती नथी. // 4 // या तारी कलाज तारुं शास्त्रोनुं जाणपणुं सूचवी यापे डे, केमके मेघनी वृष्टिविना नदी क्यांय / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust