________________ धम्मि- // अबंधि कंटकाकीर्णे / वसुदत्तापि पादपे // 35 // तत्र बघा निरुघाशा / पाशाश्लिष्टेव पक्षिणी // दिशो दशापि पश्यंती / दुःखितेति व्यसादयत् / / 36 // अहो गुरुवचोलोप–कुपितेनेव वे. धसा / नरकः प्राघुणीचके / मानवेऽपि नवे मम // 37 // मार्गभ्रंशे मृतौ पत्यु-वियोगे तनुज६३३ | न्मनां / / सरिप्लावे दृढं बंधे / जीवितायेन नाच्यवं // 30 // युग्मं // कं यजे के जजे के वा। नाषये विजने वने // एवं सा दधती खेदं / तत्रैव सुचिरं स्थिता // 35 // // 34 // पनी तेज वखते तेना हुकमथी चोरोए वसुदत्ताने पण दूर ले जश्ने मजबूत दोरमां थी कांटावाळा वृतपर बांधी दीधी. // 35 // त्यां बंधायावाद निराश थश्ने पाशमां पडेली पति णीनीपेठे दशे दिशातरफ जोतीथकी मुखित थश्ने संताप करवा लागी के, // 36 // अरे! सासुससराना वचननुं नवंघन करवाथी जाणे मारीपर गुस्से थयेला विधाताए था मनुष्यभवमां पण मने नरकातिथि करी बे. // 37 // केमके मार्गमां जूली पम्वाथो, स्वामीना मृत्युयी, पुत्रो. ना वियोगथी, नदीना पूरथी तथा मजबूत बंधनथी पण मारो जीव गयो नहि. // 30 // हवे हं या निर्जन वनमां कोने पूर्जु? कोने गजें? अथवा कोने कहुं ? एवी रीते खेद करतीथकी ते PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust