________________ धाम्न अन्यदोऊयिनीयायी / नुन्नस्तत्सुकृतैखि // कोऽपि मध्यंदिने सार्थ-स्तस्थौ तत्रैव कानने // 40 // नरैर्निराशया ब्रांतै-बघा सादर्शि पादपे॥ अमोचि च दयासारै-धनाद्रांधवैखि // | // 41 // थानीय सार्थवाहस्य / तदानीं तैः समर्पिता // तेन पृष्टा निजं वृत्त-मन्यधत्त च सा. 634 | दितः॥ 42 // गंगावीचीवरे दत्वा / चीवरे बहुमानतः // सोऽमनोजवशः प्राह / तां मनोजवतः सुवाक् // 43 // दधासि पुत्रि किं खेदं / नेदं किं ते कुटुंबकं / / मध्यस्थामुष्य सार्थस्य / सुखत्यांज घणा कालसुधी रही. // 30 // . एक दिवसे नायिनीतरफ जनारो कोश्क सार्थ तेणीना पुण्योथी. जाणे प्रेरायो होय नहि तेम मध्याह्नकाळे तेज वनमां बावीने ठेो. // 40 // त्यां जलनी अाशाथी जमता लोकोए ते. णीने वृक्षपर बांधेली दीठी, त्यारे ते ए बंधुन्नीपेठे दया लावीने तेणीने बंधनरहित करी. // // 1 // पनी तेज वखते तेनए लावीने तेणीने सार्थवाहने सोंपी, अने तेणे पूजवाथी तेणीए मूळथी पोतानुं वृत्तांत कही संभलाव्यु. // 4 // त्यारे तेणे वहु अादरसत्कारपूर्वक तेणीने गं: / गाना मोजांसरखा मनोहर वस्त्र याप्यां, तथा पनी कामदेवने वश थयाविना तेणे मनना आवे. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jur Gun Aaradhak Trust