________________ 501 धम्मि- रनासुरः // 31 // दिजादयोऽपि ते स्नाता / निषेदुः पस्तिो नृपं // नृपाहूताययौ तत्र / तदा सा / शीलवत्यपि // 32 // कुलदेवीमिवान्येत्य / मुक्तसिंहासनो नृपः // तां नत्वा प्रणयपहो। योजितांजलिरस्तुत // 33 // त्वं योषिऊनषासि / त्वं वंद्यासि महासति / / विकटे संकटेऽपि खं / य| निश्चयमपालयः // 34 // वीरा अपि वयं नात / यं जेतुं प्रनविष्णवः // त्वया त्वबलयाप्येष / वि. षमास्त्रो व्यजीयत // 35 // विनश्यति सतीनां हि / शापात्दमापा अपि दाणात् // महान मयि प्र. माहेती नथी. हवे शेग्नी ते स्त्रीनेज तुं बोलाव? // 30 // पजी राजा पण उठीने तथा उत्तम जलथी शरीर धोश्ने नवा शृंगारथी देदीप्यमान थश्ने सिंहासनपर बेठो. // 31 // वळी ते बा. झणयादिक पण स्नान करीने राजानी यासपास बेग, तथा राजाए बोलावेली ते शीलवती पण ते वखतेज त्यां यावी. // 35 // त्यारे राजा सिंहासनपरथी जतरी सामे प्रावी प्रेमपूर्वक तेणीने नमीने हाथ जोडी स्तुति करखा लाग्यो के, // 33 // हे महासति! तुं स्त्री मां मुकुटसमान तथा वंदन करवालायक नगे, केमके यावा विकट संकटमां पण तें तारा शीलवर्नु रक्षण कयु . // 3 // थमो सुन्नटो पण जेने जीती शक्या नहि एवा ते कामदेवने तें पबलाए पण जीती लीधो. // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust