________________ धम्मि- स्योखि सचेतसः // 7 || तज्ज्ञैः प्रपंचयाँचके / प्रमादः स च पंचधा / कषाया विषया मद्यं / / निद्रा च विकथा तथा // 70 // क्रोधाद्यास्तत्र चत्वारः / कषायाः परिकीर्तिताः॥ चतुऊर्गतिवासाय / ये स्युः प्रतियोगिनां // 1 // क्रोधं त्यजत नो नव्याः / क्रोधो दव व दाणात् // नस्मसा७२७ कुरुते बक-मूलं सुकृतकाननं // 2 // मानो न मानवैर्मान्यो / मद्यपानोपमो ह्ययं // कुरुते च तुरैः शोच्यान / विचेतीकृत्य देहिनः // 3 // को मायां नजतें धीमान् / माया विषधरीव यत् // प्रापशो नहिः // 15 // ते धर्मना जाणकारोए ते प्रमादने कषाय, विषय, मद्य, निद्रा बने वि. कथारूप पांच प्रकारनो वर्णव्यो . // 70 // तेमां क्रोधयादिक चार कषायो कहेला ने, के जे चार प्रकारनी दुर्गतिमा रहेवामाटे प्राणीनने सादीरूप . / / 71 // माटे हे नव्यो! तमो क्रोधनो त्याग करो? केमके. क्रोध ने ते. दावानलनीपेठे दृढमूलवाळां पण पुण्यरूपी वनने जस्मरूप करी नाखे . // 2 // वळी माणसोए. मानने पण धारण क नहि, केमके ते मद्यपानसमान के. माटे ते माणसोने निश्चेतन करीने विद्वानोने शोचनीय बनावे . // 73 / / कयो बुध्विान | माणसं मायाने जजे ? केमके ते सर्पणीसरखी डे, अने ते मनरूपी बिलमां नरा जवाथो बल. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust