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________________ धाम्म दुनृत-पुण्योहासः सुवासनः // सरनः प्राह को धर्मों। धर्मझा जवतां मतः॥ 46 // अनूचाना | स्तमूचाना / दृष्ट्वा प्रकृतिन्नद्रकं // वत्स खबोऽसि यम-विवेकं प्रचिकीर्षसि // 4 // समासेनै व धर्मस्य / रहस्यं ब्रूमहे शृणु // परो हि दूयते येन / कार्य धर्मार्थिना न तत् // 4 // त्यजेदधिपमन्यायं / वयस्यं दांनिकं त्यजेत् // दृष्टापायं त्यजेद्दासं / त्यजेम दयोशितं // 4 // उत्तास्यति पानीया–त्तिमीन जालेन ये जमाः // ते शंसंति नवे नाव्यं / पानीयोत्तारमात्मनः // 10 // पुण्यना नशासवाळो तथा स्वब वासनावाळो ते सरन बोल्यो के, हे धर्मज्ञ मुनि! अापने क. यो धर्म सम्मत थयेलो ? // 46 // त्यारे ते मुनि तेने स्वनावधी नद्रक जाणीने बोल्या के हे वत्स! तुं खरेखर निर्मल हृदयवाळो बो, के धर्मनुं विवेचन करवानी श्ला करे . // 4 // हवे अमो तने संक्षेपमांज धर्मर्नु रहस्य कहीये जीये ते तुं सांजळ? जेथी परप्राणीने फुःख थाय एवं कार्य धर्मार्थी माणसे करवू नहि. // 4 // अन्यायी राजानो, कपटी मित्रनो, नुकशानीवाला निवासनो अने दयारहित धर्मनो त्याग करवो. // 4 // जे जम माणसो जाळवडे जलमां. थी मत्स्योने जतारे , तेज था संसारमा पोतानुं पाणी पण नतरशे एम जणावे . // 20 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036433
Book TitleDhamil Charitra Bhashantar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1914
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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