________________ सार्थ धग्मि मिचारिणां // // व्योम्ना तदा त्वदाज्ञातः / कांत तत्पुरमीयुषी // प्राविशं. पुरुषीजय / वसंत तिलकागृहं // एए // दुःखेनेवांगलनेन / वेष्टितां जीर्णवाससा // मलैः क्विन्नत मूर्ते-बुर्दशा स्तबकैखि // 3300 // मुक्तामाभरणौवेन / प्रमोदेनेव दूरतः // तदंतस्तां नवन्नाम-जंजपूकामवै. विषि॥ 1 // युग्मं // अप्रादं कुशलोदंत-मुपसृत्य च तामहं // सा च मां पुरुषं प्रेक्ष्य / न्यग्मुझा देवाथी ते नमी..॥ 7 // थोमीवारमा ते पाछी श्रावीने मस्तकपर हाथ जोडीने पृथ्वीपर चालनारा मनुष्योने याश्चर्य नपजावतीयाकी पोताना स्वामीने कहेवा लागी के, // ए॥ हे खा. 'मी! आपनी माझाथी हुँ ते समये अाकाशमार्गे ते नगरमां गश्, तथा पुरुषरूपे में वसंततिलकाना घरमा प्रवेश कर्यो. // एए / शरीरे चोटेलां दुःखवडे करीने जाणे होय नहि तेम जीर्ण वस्त्रथी वाटायेली, तथा मूर्तिवंत दुर्दशाना गुबानवडे करीने होय नहि तेम मेलथी नरेलांश शरवाळी, // 3300 // हर्षवडे करीने होय नहि तेम बाजूषणोना समुहथी. दूर मुकायेली, अने आपमुं नाम जपती एवी ते वसंततिलकाने में. ते घरनी अंदर दीठी. // १॥पनी में तेणीनीपा' | से जश्ने कुशलंसमाचार पूज्या, परंतु ते मने पुरुषरूपे जोश्ने नीचं मुख करी ग.॥२॥श्रा | P.P.AC.Gunratnasuri M.S.