________________ धम्नि महावेश-कोटीभिः समुपायंत // पश्यतः परकीयं स्या-तघ्नं निधनदणे / / 75 // बिनरांचक्रि. रे स्नेहा-द्या निजांगवदंगनाः // पत्युर्मृत्युदणे ताः स्युः / स्वस्वार्थप्राप्तितत्पराः // 76 // ये स्वतो. ऽप्यधिक स्निग्धैः / कवलैः पोषिताः सुताः // तेऽपि दारूणि दत्वांते / सुखिता हूंजते धनं / / 7 / / कृत्याकृत्याविचारेण / यदपालि कलेवरं // वैरिण्या जरसा प्रांते / मिलितं तदिनंदयति // 7 // | एवं तांमवयंश्चित्त-रंगे नीरागतानटीं / सुगुरोश्चरणौ नत्वा / तत्वार्थीति व्यजिझपत् // 70 // प्र. | मये जोतजोतामां पारकुं थाय . // 75 // जे स्त्रीननु स्नेहथी पोताना शरीरनीपेठे पोषण करवामां आव्युं बे, तेन पण पतिना मृत्युसमये पोतानो स्वार्थ साधवामाटेज तत्पर थाय जे. // 76 / / जे पुत्रोने पोताथी पण अधिक रीते स्निग्ध लोजनोथी पोषवामां श्राव्या , तेन पण अंतसमये काष्टो पापीने पनी सुखेथी ते धन जोगवे . / / 99 // कृत्य अकृत्यनो विचार कर्याविना जे या शरीरने पोषवामां याव्यु बे, ते पण यंते वैरी घमपणसाथे मलीने नष्ट थाय . // 70 // पवी ते वैराग्यरूपी नटीने पोताना मनरूपी रंगमंझपमा नचावतोथको ते धम्मिल ते सुगुरुना च. रणोमां नमीने तत्वनो अर्थी थयोथको विनंति करवा लाग्यो के, // 7 // हे प्रजो! भाग्योद Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.