________________ धम्मि- यन् // 70 // श्रानंदी कविकीराणां / सदालिनिरनिष्टुतः // स मुनिषयामास / वनदेशं वसंत- / वत् / / 71 // षभिः कुलकं / मुनेनिनंसया तस्य / निर्ययौ नगरान्नृपः // प्रातः पंकेरुहोपास्त्यै / कुमुदादिव षट्पदः / / 72 // साधुचक्रेशतां धत्ते / स विश्वप्रकटं मुनिः // तत्याज राजचिह्नानि / ततस्तदर्शने नृपः // 13 // पश्यन् शमसुधांनोधौ / क्रीमतो दांतचेतसः // निर्विकारान् प्रसन्नास्यफलित करता, तपनी स्थितिने अगाडी करता, महापर्वने (मोटा दिवसने ) विस्तारता, दोषोनी उत्पत्तिने ( रात्रिनी उत्पत्तिने ) स्वल्प करता, // 70 // कविरूपी शुकोने आनंद आपनारा, स. जानोनी श्रेणियों (हमेशां नमराजथी) स्तुति करायेला एवा ते मुनि वसंतऋतुनीपेठे वनना प्रदेशने शोभाववा लाग्या. // 31 // प्रभातमा कमलने सेववामाटे कुमुदमांथी जेम उमर निकळे, तेम ते मुनिने वांदवामाटे राजा नगरमांथी निकल्यो. // 72 // मुनिराज था जगतमा प्रकटरीते साधु मां चक्रवर्तिपणुं धारण करे , एम विचारीने राजाए तेमना दर्शनथी पोतानां राजचिह्नो छोमी दीघां. // 73 // ते मुनिराजनी आसपास रहेला, समतारूपी अमृतसागरमां क्रीमा करता, दांत मनवाळा, निर्विकारी तथा प्रसन्न मुखवाळा मुनि ने जोतोयको // 14 // ते राजा | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust