________________ 64 धाम्म- कुमुदा कुमुदानंदा / धनश्रीर्वसुमत्यपि // पद्मश्रीविमला देव-कीत्यासां क्रमतोऽभिधाः // 11 / / / 'युगपत्परिणेतुं ता / हायातोऽस्ति सागरः // समं खजनवर्गेण / तेनायं लोकमेलकः // // तयोर्तियतोरेव-मितरेतरमाययौ // तत्रैव स हिपो दाव / श्व केनाप्यवारितः // 3 // तं स. मायातमालोक्य / मुक्तपाणिगृहस्पृहः // वरः परिजनैः साकं / साकंपः प्रपलायितः // 24 // नश्यता मंठ तास्तेन / बाला नालापिता अपि // स्वार्थग्रंशे समुत्पन्ने / कोऽपि कस्यापि न प्रियः // // 20 // तेन्नां अनुक्रमे कुमुदा, कुमुदानंदा, धनश्री, वसुमती, पद्मश्री, विमला तथा देवकी नामो . // 1 // तेजने एकीहारे परणवामाटे यहीं ते सागरदत्त खजनपरिवारसहित यावेलो बे, अने तेथी ते लोकोनो था मेलामो थयो . // 22 // एवी रीते तेन बन्ने जेवामां परस्पर वार्तालाप करे , तेवामां कोश्थी पण न घटकावी शकाय एवा दावानलनीपेठे ते हाथी त्यांज भावी पहोंच्यो. // 23 / / तेने श्रावेलो जोश्ने ते वरराजा तो परणवानी श्वा गेडीने कंपतो. थको परिवारसहित त्यांथी नाशी गयो. // 24 // एकदम नाशता एवा तेणे ते कन्याउने बोलावी पण नहि, केमके स्वार्थना नाशवखते को कोस्ने प्रिय थतो नथी. // 25 / / हवे शुं कर- | Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.