________________ 604 धम्मि-| साध्वीनिः संगता चिरं // 4 // सा प्रांतेऽनशनं प्राप्य / शुघाराधनतत्परा // सुरलोके द्वितीयेsमानु-दहितीयातिः सुरी // ए५ // जुक्त्वा नोगांस्ततच्युत्वा / त्वं जाता शीलवत्यसि // प्राग्नवे यावजूतां ते / पितरावधुनापि तौ // ए६ // श्तश्च तेऽपि चत्वार-श्चतुराग्या वरास्तव / / वृत्तं वि. झाय विज्ञायाः / स्वचित्तेचिंतयन्निति // ए // हास्यास्पदाः स्वमित्राणां / यास्यामः स्वगृहं कथं // ध्यात्वेति ते वनेऽन्वन / तपसे तापसास्ततः // // मृत्वा सर्वेऽपि देवेषु / जाता नवनवासिषु // नब्धृतास्ते ततः माप-मुख्या नऽनवन्नम। // एए // पूर्वसंस्कारतस्तेऽत्र / जातास्त्वय्यनु. लेश्ने शुधबाराधनापूर्वक काळ करी बीजा देवलोकमां ते अनुपम कांतिवाळी देवी थइ. // // एए // भोगो जोगवी त्यांथी चवीने तुं शीलवती थर, वळी पूर्वनवमां जे तारा मातपिता हता| - तेज था नवमां पण . // 6 // हवे ते चारे तारा चतुरशिरोमणि वरो तारुं विदुषीनुं वृत्तांत जाणीने पोताना मनमां विचारखा लाग्या के, // ए // आपणा मित्रोमां हास्यपान श्रयेला था. पणे हवे पोताने घेर शीरीते जशुंएम विचारीने तेन वनमां जश् तापस थइ तप तपवा ला. ग्या. // ए॥ पजी मरीने ते सघला भवनवासी देवोमां नत्पन्न थया, तथा त्यांथी नधरीने हे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust