________________ 152 धस्मित प्रचो गणधरोजितसिंहसरि-देवेंऽसिंहगुखः पवादिजैत्राः // 3 // धर्मप्रगो गणधरो जितवादिसार्थ | सिंदः / श्रीसिंहसूरितिलका गुरवो महेंडाः // तत्पट्टकाननमनोहरकल्पवृदा विश्वे जयंतु सुचिरं गुरुमेरुतुंगाः // 4 // महेंद्रप्रनसूरीड-पाणिपंकजदीक्षिताः // ददमुख्यास्त्रयः शिष्या / अवन्नि ति नामतः // 5 // श्रीमुनिशेखरसूरिः / श्रीजयशेखरसुरयः // श्रीमरुतुंगसूरीजा-स्ते च पट्टे प्रतिष्टिताः // 6 // कविचक्रधरः श्रीमान् / सूरिः श्रीजयशेखरः // नापि वेधा विधातुं य-कवित्व. श्रीधर्मघोषसरि, महेंद्रसिंहमूरि, सिंहप्रजसरि, तथा गणधर एवा अजितसिंहमूरि अने परवादीनने जीतनारा श्रीदेवेंऽसिंहसूरि थया. // 3 // पनी जीतेल बे वादिरूपी सिंह जेणे एवा धर्मपन ना. मे गणधर थ्या, पजी श्रीसिंहतिलकसूरि, तथा पनी महेंद्रप्रनसूरि थया, तेमनी पाटरूपी वनमां मनोहर कल्पवृदासरखा श्रीमेस्तुंगसूरि जगतमां चिरकालसुधी जयवंता वर्तो? // 4 // श्रीमहेंद्रप्रनसूरिराजना हस्तकमलथी दीक्षित थयेला तथा ददोमा मुख्य नीचेमुजब नामवाळा त्रण शिष्यो थया. // 5 // श्रीमुनिशेखरसुरि, श्रीजयशेखरसूरि, अने श्रीमेरुतुंगसूरि. ते मांथी ते मेरुतुंगसू. रिने पाटपर स्थापन कर्या हता. // 6 // तेनमांना श्रीमान जयशेखरसूरि कवि-मां चक्रवर्तीसमाः / PP.AC.Gunratnasuri M.S: