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________________ धम्मि। पश्यानेन कलावता // अहो निरवधि ग्यो-दधिः सुकृतिनां नृणां // 55 // ऊचे कमलया खेमाई दा-दहंत्या कल्मषं मुखं // देवानां प्रिय एवायं / मातर्मम न तु प्रियः // 26 // वाच्यं तदेव ये न स्या-दकस्मादेहिनां ज्वरः // वद कस्माजुरोरेत-दुरीचक्रे त्वया व्रतं // 17 // अयमुच्चासनस्थो. | ऽपि / सतां नाश्रयति श्रियं // स्नुहिः शैलशिरस्थोऽपि / न हि कल्पामायते // 27 // असो हाथीपर बेशीने यावे . // 55 // अरे! तुं जो तो खरी के थाने केटलोबधो परिवार मेलव्यो जे? यहो! पुण्यशाली मनुष्योनो नाग्यरूपी समुद्र अवधिविनानो होय . // 55 // त्यारे क. मला खेद पामीने कलुषित मुखने धारण करतीथकी बोली के हे माता! ते तो देवानां प्रिय ए. टले मूर्ख , परंतु ते मारो प्रियतम नथी. // 26 // जेथी प्राणीनने अकस्मात ताव चडे एज तुं बोले , कहे तो खरी के थावं व्रत तें कया गुरुपासेथी अंगीकार कर्यु ? // 27 // श्राधमिल जंचे आसने बेठा तां पण संत पुरुषोनी शोजाने धारी शके नहि, केमके पर्वतना शि| खरपर रहेछु पण थोरनुं वृक्ष कल्पवृक्ष यश् शकतुं नथी. // 20 // वळी ते घणा परिवारवाळो हो| वा बतां पण मारा मनने पाश्चर्य करी शके तेम नथी, केमके कुचेष्टा करनारा विदूषकनी बास- | PP.AC. Gunia nasul MS. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036433
Book TitleDhamil Charitra Bhashantar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1914
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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