________________ घम्मि- यावावां ताव-दानीते इह तिष्टतं // 20 // विमला स्नेहला प्राह / वत्स स्वबोऽसि चेतसा / न. गरे सागरे ग्राहा / श्व धूर्तास्तु रिशः // 25 // तैर्वत्स वंचितः कूट-वणिग्निरिव पामरः // यावयोरसि दुःप्राप-स्तन्मे दोदृयते मनः // 32 // अन्यधाचम्मिलो मात-न भेतव्यं मनाग६११| पि // वंचयेऽहं जगत्सर्वं / न कोऽपि मयि वंचकः // 33 // युक्त्वा सोऽचलचंपां-प्रति गैदिष्ट चांतरा / / चंद्रां चंद्राशुसंकाश-वारिसंवर्धिनी धुनीं // // 27 // हवे आपणने रहेवामाटे नगरनी अंदर हुँ सगवमवावु घर जोड्ने यावं त्यांसुधी तमो बन्ने निर्णय थश्ने यहीं रहो? / / 2 / / त्यारे ते स्नेही विमला बोली के हे वत्स! तुं स्वब चि. त्तवाळो छो, भने समुद्रमा जेम मगरो तेम नगरमां घणा ग लोको होय . // 27 // माटे बु. चा वणिकोथी जेम नोळो मनुष्य तेम जो तेजथी तुं ग्गा गयो तो अमोने तारो पत्तो मळ्वो केल थशे, माटे तेथी मारुं मन भाय ने. // 32 // त्यारे धम्मिल बोब्यो के हे माताजी! तमारे जरा पण म नहि, हुं समस्त जगतने उगुं एवो इं, परंतु मने को ठगे एम नथी. // 33 // एम कहीने ते चंपानगरीप्रते चाल्यो, एवामां वच्चे तेणे चंजनां किरणोसरखां जलथी वृद्धि / P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust