________________ धम्मित्र / कुतो वा समुपागमः // // धम्मिलोऽहं समायातः / कुशाग्रपुरपत्तनात // त्वं च निर्वचने / मा कासि / पृष्टे तेनेति सावदत् // एए // आर्य पुर्यामिहैवास्ति / वास्तव्यः सव्य तिनुः // सार्थवा | हो नागवसु-नागश्रीस्तस्य वल्लागाः॥ 3100 / / अंगजास्मि तयोरेषा / नागदत्तेति नामतः // स. 660 दात्र नागमन्यय॑ / याचे श्रीपीवरं वरं // 1 // ददे देवेन तुष्टेना-धुना मम नवान् पतिः // 3. त्युक्त्वा तां गतां गेह-मुवोष विरहानलः // // ततः सखीन्यो विज्ञात-वृत्तांतौ पितरौ सुतां / / (त्यारे ते बोल्यो के ) मारूं नाम धम्मिल , तथा हुं कुशाग्रनगरथी श्राव्यो.. वळी हे निष्क पटी! तु कोण ? एम तेने पूज्याथी ते बोली के, // // हे थार्य ! बाज नगरमा घणी स. मृधिवालो नागवसु नामे सार्थवाह रहे , तेनी नागश्री नामनी स्त्री . // 3100 // अने ते. उनी था हुं नागदत्ता नामनी पुत्री बु, तथा हमेशां यहीं नागदेवने पूजीने धनयी पुष्ट थयेला वरनी याचना करुं बु.॥ 1 // बाजे या देवे खुशी थश्ने मने तुं स्वामीतरीके आपेलो बुं, ए. म कही घेर गयेली एवी तेणीने विरहामि वाळवा लाग्योः // 2 // पनी ते वृत्तांत सखीनपासेयी | जाण्याबाद तेणीना मातपिताए पोतानी ते पुत्रीने महोत्सवपूर्वक धम्मिलसाथे परणावी. // 3 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S.