________________ धम्मि- तत्यधः // वात्ययेव जनः शिष्ट-प्रतिष्टागिरिशृंगतः // // न निद्राविह्वलै व्यं / यजीवनपि निद्रया // नवेत्परनवं प्राप्त / श्व प्राणी विचेतनः // 50 // नरेशदेशनक्तस्त्री-नेदतो विकथा स्तथा // चतस्रोऽपि कषायाणां / सहोदर्य श्वोदिताः // ए१ // मात विकथायत्ता / यत्तानिर्वि७२० क्शो जनः // पिशाचकीव यांसं / कालं गमयतेऽफलं // ए॥ प्रमादाः प्रसरं प्राप्य / पंच वं चनचंचवः // शूरस्यापि बुधस्यापि / धर्मरत्नं हरंत्यमी // 53 // तत्तद्वारयितुं धीरा / यतध्वमवधामनुष्य उत्तम प्रशंसारूपी पर्वतना शिखरपरथी नीचे पटकी पडे . / / ए // वली प्राणीनए नि. द्राथी पण अति व्याकुल थq नहि, केमके निद्रावडे करीने जीवतो प्राणी पण मृत्यु पामेलानी. पेठे चैतन्यरहित थाय . // 70 // रानकथा, देशकथा, नक्तकथा तथा स्त्रीकथा, एम चार प्र. कारनी विकथानने कषायोनी बहेनसरखी कहेली . / / ए१॥ माटे प्राणीनने ते विकथाने श्रा धीन थq नहि, केमके ते विकथा थी विवश थयेलो प्राणी पिशाचकीनीपेठे घणो समय नि फल गुमावे . // ए // उगवामां कुशल एवा ते पांचे प्रमादो फेलावो पामीने शूरा धने वि. द्वान मनुष्यना पण धर्मरूपी रत्नने हरी ले . // 73 / / माटे हे धीर मनुष्यो! ते प्रमादोने नि. P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust