________________ धाम्म तत् श्रुत्वा धम्मिलो दध्यौ / नूनमेष स खेचरः // यो मया चिबिदे लीनों / वंशांतर्वशलीलया / / माई // 4 // ढहा दुष्टदिपेनेव / स मया खनशुंडया // पक्षिणीनामिवैतासां / निनो विश्रामपादपः॥ // 5 // नदिते प्राप्रिये मेधे / मोघिते मरुता मया // विलापिन्यः कलापिन्य / श्व स्थास्यं 606 | | त्यमूः कथं // 6 // विमृश्येति शनैर्विन्य-दिव प्रोवाच धम्मिलः // न तद्घातपापेन / सोऽयं लिप्तोऽस्ति मानवः // 7 // ततः सा शिरसः कंपा-व्यंजयंती मनःशुचं // गद्गदं न्यगदन्नूनं / ब. नथी, परंतु वातना रसमां में सघ साचुंज कह्यं . / / 73 // ते सांगलीने धम्मिले विचार्य के में वांसनी क्रीमाथी वांसनी कामीमां गुप्तपणे रहेला जे पुरुषने मार्यों में, तेज था विद्याधर ने. // 4 // अरेरे! दुष्ट हाथीनीपेठे खारूपी सुंढथी पदिणी सरखी था स्त्रीनो विश्रामवृक्ष में जांगी नाख्यो ! // 5 // था स्त्रीनना स्वामीरूपी मेघने जदय पामतांज पवननीपेठे में नष्ट कर्याथी मयूरीननीपेठे विलाप करनारी या स्त्रीनना हवे शुं हाल थशे? // 6 // एम विचारीने बीकणनीपेठे ते घम्मिल धीमेथी बोल्यो के, हे भ! ते विद्याधरना घातना पापथी या मा एस व्याप्त थयो . // 7 // त्यारे मस्तक धूणाववाथी मननो शोक प्रगट करतीथकी ते कन्या | P.P. Ac. Gunratniasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust