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सिसले
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सम्मस कहिये सुमरण करना । पुच्छ कहिये प्रश्न करना, पूछना। उत्तराये कहिये उत्तर करना । शिचय कहिये | निश्चय करना ए वसुभेये कहिये जाठ भेद सोता कहिये श्रोता के हैं। गुण राव कहिये ऐसे गुण, सुग्गसिव देई
कहिये स्वर्ग मोक्ष देय हैं। भावार्थ-जे निकट संसारी, धर्मात्मा, भला श्रोता होय ताविर्षे ये माठ गुण होय हैं सोई कहिये हैं। तहां जो शास्त्र आपने सुन्या ताके कथन की बारम्बार प्रशंसा करनी। जो इन शास्त्रनि विर्षे मला तापमान सूप पुरधफल दायक कथन है ऐसे हर्ष धरि उस शास्त्र के सुनने की अभिलाषा रहै। और जो आपको वल्लभ नाही लागै तो बाकी प्रशंसा भी न होई और देखने सुनने की अभिलाषा का होगा सो वांछागुण है।। और जो कोई वस्तु आपक हितकारी जानै ती ताकौ सुनै आपको हर्ष भी होई तातें हर्ष सहित शास्त्र सुनि अपना मव सफल मानना सो श्रवण गुश है। २। और जो कोई वस्तु आपको हितकारी जाने तो ताको अङ्गीकार करखे का उपाय भी करै। तैसे ही जो जिस धर्म को हितकारी जाने ताको कथा सुनि ताको अङ्गीकार करै ही करे, सो ग्रहण गुण है। ३। और जे विवेकी अनेक बात सुनै और जो बात आपको सुखकारी लाभकारी सुनै तौ तिस बात को यादि राख है। तैसे ही जा उपदेश से अपना भला होता जानै तो धर्मात्मा श्रोता ताकों भले प्रकार यादि राखें सो धारण है। 8 । और जौ वस्तु आपको सुखकारी पाने ताको विवेकी बारम्बार यादि किया करे तैसे ही धर्मात्मा श्रोता आपको जो उपदेश हितकारी जानै ताको बारम्बार याद करता की चर्चा
करे सो सुमरण गुण कहिये । ५। जैसे काहू को कोई वस्तु को बहुत चाह होई तौ ताको बारम्बार पूछ। | तैसे आपको वल्लम धर्मचर्चा बहुत होय तो प्रश्न करें सो प्रश्न गुण है।६। काह ने कोई बात पूछो सो आप तिस बात को जानता होय तौ तिसको उत्तर देय है सो तैसे ही आप धर्मकथा तत्वज्ञान बातन को समझता होय तो उत्तर देय, सो उत्तरगुण है। ७ । जो कोई वस्तु अपने हाथ आई है ताको भलो जाने तो ताको जतन तें दृढ़ रा । तैसे ही संसार में भ्रमता-ममता उत्कृष्ट धर्म मिला जानि, महायतन तें दृढ़ होई धर्म को राखै सो निश्चयगुण है ।पारोसे यह पाठ गुण सहित जाका हदय होय सो श्रोता मोहफांस त निकसनेवारा मोक्षाभिलाषी जानना । ऐसे श्रोता के लक्षण गुण वर्णन कीने । तथा श्रोता के भला होने के भाव कहे। आगे वक्ता के लक्षण कहैं हैं। ऐसे गुण सहित वक्ता सुखदायक श्रोतानिका भला करें, सो ही कहिये है