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और पुण्यकारी कथन का ग्रहण करें। अपने काम से काम सो शुभ श्रोता बकरीसमान है जैसे बकरी-गेवो भई अपना चारा चरै कोईत द्वेष भाव नहि करें। ऐसे बकरी समानि श्रोता कह्या। आगे जैसे डांस जगह-जगह जीवनि को दुःख उपजावे तैसे ही जो जीव सपा में शास्त्र कथन होते उपदेशदातात तथा और धर्मात्मा जीवनि ते देष भावकरि बार-बार कुवचन अविनयवचन बोले, सभा तथा वक्ता को खेद उपजावे सो डांस समानि श्रोता 'कहिये। और जैसे जौंक है सो दुग्ध के भरे आँचल पैलगा लोह हो अङ्गीकार कर, वाका कोई ऐसा ही स्वभाव है। तेसे ही वाको चाहे जैसा उपदेश दो परन्तु पापाचारी जवगुण हो ग्रहै । इस दुर्बुद्धि का ऐसा श्रद्धान होय जो हमने ऐसे उपदेश घने ही सुने हैं। कोई हमारा क्या भला करेगा जो हमारे भाग्य में है सो होयगा। ऐसा श्रोता होय सो जौकसमान श्रोता है। इसको चाहे दयाकरि उपदेश कहो परन्तु दोष हो ग्रहै है सो जानना। आगे जैसे गऊ घासवाय दूध देय, तैसे ही जिनको अल्प उपदेश दिये ही ताको रुचि सहित अङ्गीकार कर अपना बहुत भला करें और तिस उपदेश तें आपकं तत्वज्ञान का लाभ भया जानि ताकी बारम्बार प्रशंसा करें। उपदेशदाता का बहुत उपकार माने, सो गऊ समानि श्रोता है। आगे जैसे हंसपय जो दूध जामें जल मिलाय धरी तो नीर तो नहीं ग्रहै और दुध के अंश अङ्गीकार कर सो हंस की चोंच का रोसा ही स्वभाव है कि ताका स्पर्श भये नीर अर दुध का अंश जुदा-जुदा होय जाय है सो नीर तो तजै अरु दूध के अंश अङ्गीकार करें. तैसेही शुष्टि का धारी सम्यग्दृष्टि है सो अनेक प्रकार उपदेशकों सनि अपनी बुद्धि तें निरधार कर है। पीछे भले प्रकार तावज्ञान सहित जो अर्थ होय है ताको अङ्गीकार कर है। अशुभकारी अनाचार हिंसासहित उपदेश सुनि ताको किरिया का तजना करें है, रोसे जो हितदायक उपदेश ग्रहै। तामें जे जिनआज्ञा में निषेधी सो तजै, जो ग्रहिवघोग्य कहो सो ग्रहै। सो हंस समान श्रोता कहिये। ऐसे चौदह श्रोतानि को जाति है सो तिनमैं चालनीसम, मारिसम, बमुलासम, पाषाशसम, सर्पसम, मैंसासम, फूटा घड़ासम, डांससम, जोंकसम ए नव जाति के श्रोता तो हीन पापाचारी हैं। अरु मिट्टीसम, सुवासमए दो मध्यम श्रोता हैं। और बकरीसम, गऊसम, हंससमय तीन उत्तम प्रोता हैं। ऐसे चौदह श्रोतानि का कथन किया। आगे उत्तम श्रीता च्यारि और हैं तिनका स्वरूप कहिये हैं।
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