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श्री संवेगरंगशाला
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इस तरह विचार करते राजा के चिन्तन प्रवाह को प्रतिपक्ष (विरति) प्रति कोपायमान अविरति रोकता है वैसे प्रतिपक्ष चिन्तन दशा के प्रति कोपायमान निद्रा ने रोक दिया, अर्थात् शुभचिन्तन करते राजा सो गये और विचार प्रवाह रुक गया। रात्री के अन्तिम समय राजा को स्वप्न आया कि अपने आपको उत्तम बल वाले पुरुष द्वारा बड़े पर्वत के शिखर पर आरूढ़ होता हुआ देखा। प्रातः मांगलिक और जय सूचक बाजों की आवाज से जागत होकर राजा विचार करने लगा कि - निश्चय ही आज मेरा कोई परम अभ्युदय होगा। किन्तु जो महाभाग मुझे पर्वत आरोहण करने में सहायक हुआ है वह पुरुष उपकार द्वारा मेरा परम अभ्युदय में एक हेतुभूत होगा ऐसा दिखता है।
राजा इस प्रकार विकल्प कर रहा था, इतने में द्वारपाल ने शीघ्रता से आकर दोनों हाथ मस्तक ऊपर जोड़कर कहा कि-हे देव ! हाथ में पुष्प की माला लेकर उद्यानपालक आपके दर्शन के लिए दरवाजे पर खड़े हैं तो इस विषय में मुझे क्या करना चाहिये ? राजा ने कहा-उन्हें जल्दी ले जाओ। इससे उसने आज्ञा को स्वीकार कर उसी समय उद्यानपालकों को लेकर राजा के पास ले आया। उद्यानपालकों ने राजा को नमन कर पुष्पमाला अर्पण की और हाथ जोड़कर कहा हे देव ! आप विजयी हों ! आपको बधाई है कितीन लोक को प्रकाश करने में सूर्य के समान, तीन भवनरूपी सरोवर में खिले हुए कमलों की भ्रान्ति करते उज्जवल यश के विस्तार वाले, तीन छत्रों ने जाहिर किया स्वर्ग, मृत्यु और पाताल के श्रेष्ठ स्वामीत्व वाले, तीन गढ़ से घिरे हुए, मणिमय सिंहासन पर बैठे हुए हर्ष की मस्ती वाले देवों ने बँधाने के लिए फैंके हुए प्रचुर पुष्पों की अंजलि द्वारा पूजे गये, संशयों को नाश करने में समर्थ, शास्त्र की धर्म कथा को करने वाले, इन्द्र के हाथ से सहर्ष कुमुद और बर्फ समान उज्जवल चामरों के समूह को ढोलने वाले, विकसित श्रेष्ठ पत्तों वाले अशोक वृक्ष द्वारा आकाश मंडल को शोभायमान करने वाले, सूर्य से भी प्रचण्ड तेजस्वी भामण्डल से अन्धकार को नाश करने वाले, देवों ने बजाई हुई दुंदुभि के अवाज से प्रगटित अप्रतिम शत्रुओं के विजय वाले, गणनातीत मनोहर सुरेन्द्र और असुरेन्द्र के समूह पूजित चरण कमल वाले और शरणागत वत्सल भगवान श्री महावीर देव स्वयमेव पधारे हुए हैं।
ऐसी बधाई को सुनने से अत्यन्त श्रेष्ठ हर्ष द्वारा शरीर में प्रगट हुआ निबिड रोमांचित वाला तीन लोक की भी लक्ष्मी हस्त कमल में आई हो इस